दुसरो को नीचा दिखाने से आप महान नहीं बन सकते।
यह बात इतनी सरल नहीं है जैसे की इस पोस्ट में बताया गया है| पश्चिम में हर व्यक्ति एक से ज्यादा बार विवाह नहीं करता| संतान भी उच्च महाविद्यालय का शिक्षण संपूर्ण होने पर ही अपना घर बनाते है; जो संतान उच्च महाविद्यालय नहीं जाते, वो आजीविका का प्रबंध होने के बाद ही विभक्त होते हैं| यह एक सम्पूर्णत: मुर्ख निवेदन है की Mother’s Day और Father’s Day पर ही संतान अपने माता या पिता को मिलने जाते है| औसत: विवाह होने के पश्चात भी संतान और उनका कुंटुंब माँ-बाप को मिलने के लिए समय समय पर आते ही रहते हैं| कई घरो में संतान विभक्त होने के बाद भी उनका शयन कक्ष उनके लिए ही आरक्षित रखा जाता है और जब भी वो घर आते है तब उनका निवास वही होता है| मैं ऐसे परिवारों को जानता हूँ जहां वृद्ध या अपंग माता/पिता की सेवा के लिये पुत्री अविवाहित रही हो|
यह बात नहीं कि यहाँ के समाज में कौटुंबिक समस्या नहीं हैं| यहाँ की समस्याऐं भारत की तुलना में अधिक गंभीर है पर हमारे समाज का समाधान हम उन पर थोप नहीं सकते क्योंकि दोनों समाज की अवधारणा में मुलत: भिन्नता है| पश्चिम का समाज अधिकाधिक व्यक्ति-स्वातंत्र्य को महत्व देता है और पूर्व की संस्कृति संयुक्त कुंटुंब को प्राधान्य देता है जिस में व्यक्ति-स्वातंत्र्य को गौण माना गया है|
अमेरिका में ४६ वर्ष के निवास के पश्चात मैं इतना शीखा हुं कि कोई भी समाज व्यवस्था से परे रह कर या उसे जिये बिना उसके लिये सामान्यीकरण (generalization) करना नितांत बालोचित (childish) है|
मुझे बड़ा दुःख होता है जब मैं यह देखता हूँ कि बहुधा हमारा समाज अन्य देश, अन्य धर्म या अन्य समाज व्यवस्था को किसी माहिती या अभ्यास और चितन के बिना ही नीचा दिखाने मैं विकृत आनंद लेता है और ऐसा करने से ही भारत की सर्वश्रेष्ठता प्रतिपादित हो जाती है ऐसे भ्रम में राचते है|
यह सच बात है की भारत को पश्चिम के रीत रिवाज और उत्सव-दिनो को अंधतापूर्वक अनुकरण करने की कोई आवश्यकता नहीं है पर यह भी कटु सत्य है कि social media में भारत के और हिन्दू संस्कृति के अथाग गुणगान होने के पश्चात भी लाखो माँ-बाप या तो वृद्धाश्रम में है या उनके संतान उनके क्षेमकुशल की चिंता नहीं करते|
वैश्विकरण की विपरीत असर तो हो के ही रहेगी| यह हमारा दुर्भाग्य है की हम अभी भी पश्चिम से अनुशाशन, समय का सन्मान, वाहन चलाने में आत्मसंयम, ग्राहक के प्रति संवेदना, स्वछता, अन्य की असुविधा का विचार, मातृभाषा का गौरव और दैनिक व्यवहार में उपयोग,एक राष्ट्र भावना, लोकशाही का संवर्धन आदि अच्छे गुण हमारे वैयक्तिक और सामाजिक जीवन में आत्मसात करना नहीं चाहते हैं पर कॉलेज डे, चोकोलेट डे, रोज़ डे, वेलेंटाइन डे, मधर्स डे, फाधर्स डे, सांता क्लॉस, क्रिस्टमस और आंग्ल नव वर्ष का उत्सव, विवाह के पहले ही कौमार्यभंग, समलैंगिकता, नशीले पदार्थों का सेवन, इत्यादि को बिना सोचे समझे अपना रहे हैं और इस में गौरव भी लेते है| अस्तु!
गौरांग वैष्णव
Nicely described in Hindi. Appropriate selection of words.Good analysis.-Dhaval